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सच्चा प्रेम क्या है

जीवन साथी मतलब जीवन का साथी।

जीवनसाथी के रूप में पति -पत्नि के रिश्ते को स्वीकार किया गया है, क्योंकि यहीं एक ऐसा रिश्ता है जो तन, मन और धन से पूरी तरह एक – दूसरे के लिए समर्पित है। समर्पण ही इस रिश्ते का आधार है। जहां समर्पण नहीं है वहां सच्चा जीवन साथी नहीं कहा जा सकता। मनुष्य जीवन जीने के लिए एक सच्चे जीवन साथी का होना जरूरी है।

एक स्त्री और एक पुरुष पति-पत्नी के रूप में संपूर्ण जीवन के लिए जीवन साथी होते हैं। एक के बिना दूसरे का अस्तित्व ही अधूरा होता है। जिस तरह एक सिक्के के दो पहलू होते हैं और दोनों पक्ष मिलकर एक सिक्के को पूर्ण  बनाते हैं उसी तरह से पति और पत्नि दोनों एक दूसरे को पूर्ण  बनाते हैं।  पति पत्नि का रिश्ता उस दीया और बाती की तरह है जिन्हें अपना महत्व सिद्ध करने के लिए एक दूसरे की आवश्यकता होती है। दीये के बिना बाती का कोई महत्व  नहीं है और उसी तरह बाती का भी दीये के बिना कोई महत्व नहीं है, एक दूसरे के बिना उनका अस्तित्व ही अधूरा है उसी तरह से पति-पत्नि दोनों मिलकर एक दूसरे को पूर्ण बनाते हैं।

  • पति दिल है तो, पत्नि धड़कन है। 
  • पति प्रेम है, तो पत्नि अहसास है। 
  • पति फूल है, तो पत्नि खुशबू है। 
  • पति सूर्य है, तो पत्नि किरणें है।और  
  • पति चांद है तो पत्नि चांदनी है।

  जहां एक के बिना दूसरे का कोई महत्व ही नहीं है। पति- पत्नि का रिश्ता न तो बचपन से होता है और न ही यह खून का रिश्ता होता है, फिर भी यह रिश्ता जीवन जीने के लिए और सभी रिश्तो से अधिक महत्वपूर्ण होता है क्योंकि यह जीवन- साथी का रिश्ता होता है जो जीवन भर अपने साथ रहता है। हालांकि माता-पिता, भाई-बहन, बेटे – बेटी आदि रिश्ते भी अपनी जगह बहुत महत्व रखते हैं लेकिन वे फूल के लिए खुशबू, सूर्य के लिए गर्मी, और चांद के लिए चांदनी की जगह नहीं ले सकते। 

पति- पत्नि का रिश्ता प्रेम और विश्वास की मजबूत डोर से जुड़ा रहता है। जहां सच्चा प्रेम है वहां अपने आप विश्वास भी मौजूद होगा। इस रिश्ते को सहेज कर रखने की आवश्यकता होती है। जिस तरह गहने – जवाहरात आदि को अलमारी में सहेज कर रखा जाता है उसी तरह से इस रिश्ते को भी अपने हृदय रूपी अलमारी  में सहेज कर रखने की आवश्यकता होती है।  यदि गहने -जवाहरात आदि  को सहेज कर न रखा जाये तो उनके खराब होने का, खो जाने का डर रहता है उसी तरह पति पत्नी के रिश्ते को हृदय की गहराइयों में प्रेम के साथ सहेज कर न रखा जाए तो उनके टूटने का अथवा  उनमें कड़वाहट आने का डर रहता है। सबसे ज्यादा अपनी स्वयं की वाणी,शक,अहंकार और अविश्वास इस रिश्ते को  नुकसान पहुंचा सकते है। 

 रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो छिटकाय। टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गांठ पड़ जाय।                                                         – रहीम

लेकिन आज के समय में अधिकतर पति- पत्नि के बीच के रिश्ते की डोर जो प्रेम और विश्वास से बंधी हुई है, कमजोर दिखाई देती है। इसीलिए पूरा जीवन तो बहुत दूर, पति -पत्नि का रिश्ता कायम होने के कुछ समय पश्चात ही वे टूटते हुए नजर आते हैं या उनमें कड़वाहट भर जाती है। समाज में बढ़ते हुए तलाक के केस इस बात को सिद्ध कर रहे हैं। आज पति -पत्नि के रिश्ते में एक दूसरे से अपेक्षायें बहुत ज्यादा  होती है। जब वे एक दूसरे की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरते तो उनके रिश्ते में कड़वाहट आ जाती है। जबकि इस रिश्ते की डोर प्रेम से बंधी हुई है और प्रेम का सच्चा अर्थ  तो बिना किसी अपेक्षा के समर्पण है। हालांकि प्रेम पूरे जीवन का एक निष्कर्ष है लेकिन जब पति -पत्नि के रूप में एक रिश्ते में बंध जाते हैं वहां प्रेम करने की दिशा में कदम बढ़ जाने चाहिए।

यदि पति-पत्नि दोनों अपेक्षारहित प्रेम करने की दिशा में अपने कदम बढ़ा दें तो इस रिश्ते से खूबसूरत और प्यारा और कोई रिश्ता नहीं है। प्रेम, त्याग, समर्पण और सहयोग, ये सब गुण इस रिश्ते को मजबूत बनाये रखने के लिए जरुरी हैं। जीवन तो कसौटियो से भरा हुआ है। सुख है तो निश्चित ही दुख भी होगा, दिन है तो रात भी होगी। धूप है तो छांव भी होगी। इसी तरह जीवन में अच्छा- बुरा समय आता जाता रहता है। कठिन परिस्थितियां ही तो पति- पत्नि के रिश्ते की सच्ची परीक्षा होती है।  जो पति-पत्नि इन कठिन परिस्थितियों  को स्वीकार करते हुए और उन्हें दूर करने के प्रयास में, एक – दूसरे का साथ देते हुए, प्रेम और विश्वास के साथ अपनी सभी  जिम्मेदारियों को निभाते हुए, पूर्ण समर्पण के साथ खुशी-खुशी कठिन परिस्थितियों को पार कर लेते हैं वे ही सही मायने में सच्चे जीवन साथी कहलाते हैं और तभी सही मायने में इस रिश्ते की सार्थकता सिद्ध होती है।
 यदि आप मेरे विचारों से सहमत न हो तो मै इसके लिए आपसे क्षमा प्रार्थी हूँ।                                                    

लेखिका

रेखा खण्डेलवाल 

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