樂威壯levitra是改善男性勃起功能障礙的藥物,通常是在性刺激過程中陰莖因為陰莖動脈和海綿體平滑肌鬆弛,正品購買推薦 樂威壯,國際知名品牌,安全有保證。

क्या हम आज वास्तव में स्वतंत्र हैं

भारत ने अंग्रेजों से सन 1947 में ही स्वतंत्रता प्राप्त कर ली थी l पर, क्या हम आज वास्तव में स्वतंत्र हैं ? यह एक सोचने का विषय हैl आज भी हम वास्तव में मानसिक रूप से परतंत्र हैं 15 अगस्त और 26 जनवरी को औपचारिकता के रूप में झंडारोहण कर लेते हैं भाषण दे लेते हैं सुन लेते हैं और मिठाई बांट देते हैं और देशभक्ति का दिखावा करते हैं पर क्या हम आज वास्तव में पूर्णतया स्वतंत्र हैं l सच्ची स्वतंत्रता क्या है, इसका विश्लेषण हम निम्नांकित मुद्दों के पर विचार करके करेंगेl

भ्रष्टाचार

एक तरफ जहां चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह जैसे देशभक्तों ने देश की आजादी के लिए, यानी देशवासियों की भलाई के लिए, अपने प्राण तक न्यौछावर कर दिए, उसी देश में भ्रष्टाचार इतना बढ़ गया है कि हर दूसरा व्यक्ति अपनी जेब भरने के लिए अपने ही देशवासियों को लूट रहा हैl क्या सोचती होंगी देशभक्तों की आत्माएं, हमने ऐसे लोगों के लिए कुर्बानी दीl एक तरफ जहां हम रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचारियों के गुलाम हैं तो हमें पूर्ण स्वतंत्र नहीं कहा जा सकता और दूसरी ओर भ्रष्टाचारी और रिश्वतखोर गलत काम करने के लिए स्वतंत्र हैं तो क्या हम इसे स्वतंत्रता कहेंगेl

अपराध

आज कोई भी व्यक्ति स्वतंत्र रूप से बंदूक या चाकू लेकर घूमता है और अकारण ही छोटी सी बात पर दूसरे की हत्या तक कर देता है, यह कैसी स्वतंत्रता है? इतना खून खराबा तो शायद अंग्रेजों ने भी नहीं किया होगा जितना आज के समय स्वतंत्रता के बाद भी देश में हो रहा हैl देश में अपराधीकरण बहुत तेजी से बढ़ रहा हैl देशवासी आपस में ही लड़ रहे हैं और अपने ही भाई बहनों को अपराध का शिकार बना रहे हैंl

धार्मिक सांप्रदायिकता

अंग्रेजों ने भारत को गुलाम बनाए रखने के लिए लोगों में धर्म के आधार पर फूट डालने का प्रयास कियाl फूट डालो और राज करो उनका नारा थाl परंतु फिर भी वे भारत को आजाद होने से ना रोक सके क्योंकि उस समय भारतीयों में एकता थीl लोग अपने आप को सिर्फ भारतीय मानते थे और किसी भी धर्म का  होने पर भी उनमें एकता थी और धार्मिक वैमनस्य की भावना नहीं थीl परंतु आज स्थिति बिल्कुल विपरीत है लोग अपने अपने धर्म को फैलाने का प्रयास करते हैं और दूसरे धर्मों के प्रति घृणा का भाव रखते हैंl जहां स्वतंत्रता सेनानी अलग-अलग धर्मों के होकर भी एक साथ मिलकर अंग्रेजो के खिलाफ लड़े वहां आज भारतीय एकता रखने के बजाय धर्मों के आधार पर आपस में ही लड़ रहे हैंl क्या यह धार्मिक स्वतंत्रता है? धार्मिक स्वतंत्रता का अर्थ है हर व्यक्ति अपने धर्म को अपनाने के लिए स्वतंत्र है परंतु साथ ही साथ दूसरे धर्म का भी सम्मान करेl “मजहब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना”, ये लाइने अब किताबों में ही सिमट कर रह गई हैंl

विदेशी संस्कृति

आज हम अंग्रेजों से मुक्त होने पर भी पाश्चात्य संस्कृति को अपना रहे हैं और भारतीय संस्कृति को भूलते जा रहे हैंl जहां पहले विवाह जैसा पवित्र बंधन सालों साल मजबूत मजबूती की डोर से बंधा होता था, आजकल उसके मायने ही बदल गए हैंl आजकल शादी के कुछ समय बाद ही लड़का लड़की तलाक ले लेते हैं और अपनी पसंद से दूसरी शादी कर लेते हैंl पाश्चात्य संस्कृति में यह कुछ गलत नहीं है, परंतु भारतीय संस्कृति के अनुसार तो यह बहुत अपमानजनक बात हैl

इतना ही नहीं लिव इन रिलेशनशिप को वैध करार दे दिया गया है जो कि पश्चिम से ही आई हैl अब एक लड़का लड़की बिना विवाह किए साथ रह सकते हैंl पाश्चात्य सभ्यता में यह स्वीकार्य है क्योंकि वहां की संस्कृति है ऐसी है पर भारतीय संस्कृति में ऐसा नहीं हैl इसी प्रकार समलैंगिकता भी पाश्चात्य संस्कृति की देन हैl ईश्वर ने स्त्री और पुरुष दो लिंग बनाए हैं, परंतु समलैंगिकता ईश्वर के या प्रकृति के नियम को चुनौती देने के समान हैl लेकिन अब यहां पर भी हर व्यक्ति हर चीज में स्वतंत्रता पाना चाहता हैl तो क्या यह वास्तविक स्वतंत्रता है? वास्तव में हम अंग्रेजों से आजाद भौतिक रूप से तो हो गए परंतु मानसिक रूप से उनके गुलाम हैं और बनते जा रहे हैंl

भाषा

आज हम बड़े-बड़े व्याख्यान सुनते हैं, बैठकों में चर्चाएं होती है वह सब अंग्रेजी भाषा में ही होती हैl भारतीय व्यक्ति अपनी मातृभाषा हिंदी बोलने पर भी शर्म महसूस करता है और अंग्रेजी में बोलने पर शान समझता हैl ठीक है, अंग्रेजी भाषा विश्व स्तर की भाषा है परंतु, कम से कम जिस सभा में केवल भारतीय हों, उसमें तो हिंदी का प्रयोग किया जा सकता है और यह सम्मान की बात होनी चाहिएl कैसी विडंबना है कि हमारी हिंदी भाषा के लिए हमें एक विशेष हिंदी दिवस मनाना पड़ रहा है और उस दिन हम हिंदी में लिख बोलकर या एक दूसरे को बधाई देकर खानापूर्ति कर लेते हैंl क्या यह भाषा की स्वतंत्रता कही जाएगी या मानसिक परतंत्रता l

खानपान और रहन-सहन

हम राबड़ी, दलिया, दाल-बाटी जैसे देसी खानपान को छोड़कर फास्ट फूड की तरफ आकर्षित हैंl छाछ और सत्तू का स्थान चाय-कॉफी और कोल्ड ड्रिंक्स ने ले लिया है जो अंग्रेजों की ही देन हैl वेस्टर्न डांस, वेस्टर्न कपड़े, यूरोपियन टॉयलेट, इत्यादि शब्द हमारे शब्दकोश में बढ़ते जा रहे हैंl

पहनावे की बात करें तो पश्चिम में पुरुष फुल पैंट और स्त्रियां हाफ पैंट या स्कर्ट पहनती हैं क्योंकि यही उनकी संस्कृति है, उनके लिए इसमें कुछ गलत नहीं हैl परंतु, हमारी संस्कृति इसके विपरीत है फिर भी हम पहनावे की स्वतंत्रता चाहते हैं और जिन वस्तुओं को पहनना स्त्रियों के लिए हमारी संस्कृति के अनुसार अशोभनीय है उन्हें पहनने में वह अपनी शान समझती हैंl हम धोती, कुर्ता, साड़ी इत्यादि को भूल चुके हैं और शर्ट, पेंट, टाई, शॉर्ट्स, जींस, इत्यादि पहन कर गर्व महसूस करते हैं और अन्य सब प्रकार के वस्त्र पहनने की स्वतंत्रता चाहते हैं तो क्या यह वास्तव में स्वतंत्रता है या मानसिक परतंत्रताl कहीं हम अंग्रेजों से मुक्त होने पर भी मानसिक रूप से उनके जैसे तो नहीं होते जा रहे उनके गुलाम तो नहीं होते जा रहेl यह एक विचारणीय मुद्दा हैl

एकल परिवार व्यवस्था

एकल परिवार व्यवस्था भी पश्चिम की ही देन हैl पश्चिम में एकल परिवार ही होते हैंl बच्चों को बड़े होते ही स्वतंत्र छोड़ दिया जाता है, वह जहां चाहे जाए और जो चाहे करेंl पहले यहां पर संयुक्त परिवार हुआ करते थे पर अब हमारे देश में भी एकल परिवार का चलन बढ़ता जा रहा है, जिस में भी पति पत्नी दोनों नौकरी करते हैं और बच्चों को आया या क्रेस्ट के भरोसे छोड़ दिया जाता है, तो उनमें अच्छे संस्कार कहां से आएंगेl

निष्कर्ष

निष्कर्ष यह है कि हमें भारत के सच्चे सपूत बनकर देश को मानसिक गुलामी से बचाना होगा और देश की प्रगति के लिए भरसक प्रयास करना होगाl तभी हम सच्चे देशभक्त कहला सकते हैंl सबसे पहले हमें खुद को ही बदलना होगा तभी समाज को बदला जा सकता है और एक नए भारत की कल्पना की जा सकती है जिस पर हम सब को गर्व हो और स्वतंत्रता सेनानियों की आत्माएं भी गर्व कर सकेंl

यह सब मेरे व्यक्तिगत विचार हैं यदि इनसे किसी को ठेस पहुंचे तो मैं हाथ जोड़कर उनसे क्षमा चाहता हूंl

– अजय खंडेलवाल

हमारी अन्य पोस्ट को पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें

Forensic evidences in trial
About Happy Healthy Society

Happy Healthy Society is an initiative to improve the Educational, Financial, Physical, Mental & Spiritual health of the society.

Get Started
Privacy Settings
We use cookies to enhance your experience while using our website. If you are using our Services via a browser you can restrict, block or remove cookies through your web browser settings. We also use content and scripts from third parties that may use tracking technologies. You can selectively provide your consent below to allow such third party embeds. For complete information about the cookies we use, data we collect and how we process them, please check our Privacy Policy
Youtube
Consent to display content from Youtube
Vimeo
Consent to display content from Vimeo
Google Maps
Consent to display content from Google
Spotify
Consent to display content from Spotify
Sound Cloud
Consent to display content from Sound