सच्चा प्रेम (True Love)
सच्चा प्रेम क्या है
प्रेम ढाई अक्षर से बना एक शब्द जितना सरल दिखाई देता है उतना ही कठिन भी है। सिर्फ यह कह देना कि मैं तुमसे प्रेम करता हूं प्रेम नहीं है। सच्चा प्रेम क्या है, इसे समझना जरूरी है |
क्योंकि प्रेम को शब्दों में परिभाषित ही नहीं किया जा सकता। प्रेम तो बस हो जाता है इसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है। प्रेम न आंखों से दिखाई देता है और न कानों से सुनाई देता है। प्रेम वह है जिसे सिर्फ ह्रदय की गहराइयों में महसूस किया जा सकता है। जैसे हवा के स्पर्श को महसूस करते हैं और जब सच्चा प्रेम होता है तो वह सर्वोत्तम आनंद की स्थिति होती है जिसके आगे दूसरी सभी चीजों से मिलने वाला आनंद तुच्छ नजर आता है।
पोथी पढ़ – पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोई।
ढाई अक्षर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
कबीर
आखिर क्यों कबीर दास जी ने कहा है कि जिसने प्रेम के ढाई अक्षर को पढ़ लिया (समझ लिया) वो ही महान ज्ञानी है जबकि असंख्य किताबें पढ़ने वाला भी महान ज्ञानी नहीं हो सकता क्योंकि जगत भर की किताबें पढ़कर समझना ज्यादा आसान है लेकिन प्रेम के ढाई अक्षर को समझना इतना आसान नहीं है। प्रेम को सिर्फ स्वयं के अनुभव के आधार पर ही समझा जा सकता है और बहुत कम लोग ही ऐसे होते हैं जिन्हें अपने संपूर्ण मानव जीवन में प्रेम समझ में आ जाए। वे ईश्वर तुल्य महान विभूतियां ही है।
प्रेम का अनुभव करने के लिए संपूर्ण जीवन की कई कसौटियों से गुजरना पड़ता है। उन सुख-दुख से जो कि धूप और छांव की तरह जीवन में आते जाते रहते हैं तब प्रेम की सार्थकता समझ में आती है। प्रेम को परिभाषित तो किया ही नहीं जा सकता है। लेकिन जितना मैं अब तक के अपने जीवन के अनुभव के आधार पर समझ पाई हूँ प्रेम का अर्थ सिर्फ त्याग है, प्रेम निःस्वार्थ होता है। प्रेम में तो सिर्फ देने का ही भाव होता है लेने का नहीं,यदि प्रेम में देन- लेन होने लगे तो वह प्रेम नहीं सौदा बन जाता है।
जब हम बिना किसी चाहत के किसी के लिए कर्म करते हैं, अपनी मनपसंद वस्तु तक का भी त्याग कर देते हैं तब कहीं जाकर हम प्रेम करने की दिशा में कदम रखते हैं तब भी हम यह नहीं कह सकते कि हम प्रेम करते हैं क्योंकि ये तो शुरुआत है जीवन की आगे की कसौटियों से गुजरना अभी बाकी है। प्रेम तो संपूर्ण जीवन के एक निष्कर्ष के रूप में निकल कर आता है।
आज की युवा पीढ़ी प्रेम को लेकर अत्यधिक भ्रमित हो रही है ,वह महज आकर्षण को ही प्रेम समझ बैठी है। मैं सिर्फ उनसे इतना पूछना चाहती हूं कि पल भर के लिए कल्पना कीजिए कि जिस आकर्षण की वजह से उन्हें प्रेम हो गया है यदि वह आकर्षण नष्ट हो जाए तो क्या तब भी वह प्रेम बना रहेगा। जैसे यदि कोई किसी की सुंदरता पर मोहित हो जाता है और यदि वह सुंदरता ही नष्ट हो जाए तो, यदि कोई किसी के धन – वैभव से प्रभावित होकर प्रेम करता है और वह धन वैभव ही नष्ट हो जाए तो फिर भी उसका प्रेम जितना आज है उतना ही बना रहेगा।
जिसके लिए वे अपने जीवन का अमूल्य समय गॅवा रहे हैं जो उसके जीवन में वापस कभी लौटकर नहीं आएगा। जो समय उनके संपूर्ण जीवन के लिए उनका भविष्य निर्धारित कर सकता है।
प्रेम ही करना है तो ऐसी चीज से आकर्षित होकर करो जो जीवन में किसी भी परिस्थिति में नष्ट न हो सके। आज आकर्षण को ही प्रेम समझने की भूल के कारण ही जब जीवन की कसौटियां आती है तो उसमें वो ही प्रेमी जो प्रेम करने का दांवा करते थे डगमगा जाते हैं, रिश्तो में अलगांव आ जाता है। यही कारण है कि आज विवाहित जोड़े लंबे समय तक मधुर रिश्ते के साथ नहीं चल पाते। या तो वे टूट जाते हैं या फिर उन रिश्तों के बीच नकारात्मकता आ जाती है। समाज में रिश्तों के बीच में जो नकारात्मकता दिखाई देती है उसका कारण ये ही है क्योंकि वहां सच्चा प्रेम नहीं है।
यदि पति-पत्नी के रिश्ते का आधार बाहय आकर्षण न होकर सच्चा प्रेम हो तो जीवन की सभी कसौटियों में भी मजबूती से टिका रहता है बल्कि और मजबूत हो जाता है क्योंकि जहां सच्चा प्रेम होता है वहां अहंकार नहीं होता और अधिकतर रिश्ते अहंकार के हावी हो जाने के कारण टूट जाते हैं अथवा उनमें कड़वाहट आ जाती है।
प्रेम वह है जो आंतरिक सुंदरता से होता है जो समय के साथ खत्म नहीं होती। प्रेम करने के लिए प्रेमी के भौतिक शरीर की उपस्थिति तक आवश्यक नहीं है। क्योंकि जब किसी से सच्चा प्रेम होता है तो उसे हर पल अपने हृदय के अंदर महसूस किया जा सकता है। बस प्रेम करने के लिए तो सिर्फ सरल होना आवश्यक है मानव हृदय का रिक्त होना आवश्यक है, मानवीय गुणों (प्रेम, दया, करुणा, सहिष्णुता, निस्वार्थता, विनम्रता, सहनशीलता) से परिपूर्ण होना आवश्यक है, हृदय की गहराइयों में उतरना आवश्यक है।
जल में बसें कुमोदनी, चंदा बसे आकाश।
जो जांही को भावता, वो तांहि के पास।
जिसे जिसकी चाहत रहती है वह हर पल उसे महसूस कर सकता है। जैसे मां ।मां अपने बच्चे की परवरिश करती है, उससे प्रेम करती है तो उसके मन में यह ख्याल नहीं रहता है कि इसके बदले में वह अपने बच्चे से कुछ प्राप्त करेगी। प्रेमवश ही वह अपने बच्चे को हंसता खेलता देख कर खुश होती रहती है। मां का वह निस्वार्थ प्रेम एक अबोध बच्चा भी महसूस कर पाता है जिसकी समझ अभी विकसित भी नहीं हुई है। लेकिन माँ की गोद में आते ही वो निश्चिंत हो जाता है क्योंकि उसको विश्वास है की अब वह सुरक्षित हाथों में है और वो हर हालात में उसको संभाल लेगी | इसीलिए सबसे पहले वह मां शब्द को समझ पाता है ।
आखिर ऐसी कौन सी चीज थी जिसके कारण वह अबोध बच्चा मां के प्रेम को महसूस कर पाया। वह मां का निस्वार्थ प्रेम और बच्चे के प्रति उसका त्याग उसका समर्पण था। उस बच्चे ने भी यह महसूस किया कि जब भी उसे किसी चीज की आवश्यकता हुई उसकी मां हमेशा उसके लिए तैयार थी। आधी रात को भी बच्चे को भूख लगी तो उस समय उसके लिए उसकी मां तैयार थी। मां का यह समर्पण वह अबोध बच्चा भी महसूस कर पा रहा है जिसे इस संसार में आए हुए अभी ज्यादा वक्त भी नहीं हुआ है। जो सिर्फ मां के त्याग और समर्पण से ही वह समझ पाया।
मां और उस अबोध बच्चे के बीच का प्रेम ही सच्चा प्रेम है जिसमें बच्चे का हृदय सरल है और मां का प्रेम निस्वार्थ है और त्याग से परिपूर्ण है तभी तो बच्चे के दूर होने पर भी यदि बच्चा किसी परेशानी में हो तो मां का हृदय उसे भांप लेता है।
प्रेम सिर्फ प्रेमी प्रेमिका के बीच ही नहीं होता है प्रेम भाई – बहन, माता – पिता, गुरु – शिष्य, पति-पत्नी यहां तक कि एक मानव का दूसरे मानव के प्रति भी प्रेम एक प्रेम ही है। इसी के साथ प्रकृति के प्रति प्रेम, जीव-जंतु, पेड़-पौधे, सभी सजीव और निर्जीव वस्तुओं के प्रति प्रेम भी एक प्रेम ही है लेकिन यह तभी संभव है जब अपना हृदय सरल और मानवीय गुणों से परिपूर्ण हो।
मै पिछले छः वर्षो से हार्टफुलनेस मेडिटेशन का अभ्यास कर रही हूँ और मेडिटेशन के द्वारा हीं मैंने जाना कि प्रेम करने की चीज नहीं है यह तो हो जाता है बल्कि अब तो यह ख्याल आता है कि स्वयं प्रेम ही बन जाना है जिसे देखकर सिर्फ प्रेम का ही एहसास हो ।अपने अनुभव के आधार पर मैं यह कह सकती हूं कि मेडिटेशन के द्वारा ही हृदय को सरल और मानवीय गुणों से परिपूर्ण बनाया जा सकता है और नकारात्मक प्रवृत्तियों (ईर्ष्या, लालच, अहंकार, घृणा आदि )से छुटकारा पाया जा सकता है। तब कहीं जाकर मनुष्य प्रेम कर पाता है, प्रेम बन जाता है अथवा प्रेम के सौंदर्य और उसकी गहनता को महसूस कर पाता है। और वही सच्चा प्रेम है।
पवित्रता ही प्रेम का सार है।
हार्टफुलनेस मेडिटेशन के द्वारा प्रेरित
यदि आप मेरे विचारों से सहमत ना हो तो मैं इसके लिए हाथ जोड़कर आपसे क्षमा मांगती हूं।
लेखिका
रेखा खंडेलवाल